मेहनत और लगन का कोई विकल्प नहीं
लखनऊ के जाने-माने उद्घोषक सुरेश शुक्ला जी की प्रथम पुण्यतिथि 27 नवंबर 2020 पर विशेष
ख़्वाहिशों से नहीं गिरते हैं फूल झोली में,
शाख़े आर्ज़ू को हरक़त में लाना होगा ।
कुछ नहीं होगा कोसने से अंधेरे को,
अपने हिस्से का चिराग़ ख़ुद ही जलाना होगा ।।
इस जज़्बे से सराबोर, लखनऊ के जाने माने उद्घोषक आदरणीय सुरेश शुक्ला जी, भले ही आज हमारे बीच नहीं है पर उनकी दृढ़ता, उनकी कार्यशैली, उनकी स्पष्ट वादिता, और उनकी अपने कार्य के प्रति समर्पण की भावना, हमें हमेशा उनकी याद दिलाती है। सुरेश शुक्ला जी लखनऊ के पहले ऐसे उद्घोषक थे, जिन्होंने संगीत की हर विधा को जीवंतता प्रदान की। सुरेश शुक्ला जी का मानना था कि शब्द ब्रह्म है, यह सत्य है। शब्द ब्रह्म,पर ब्रह्म को प्राप्त करने का सोपान अथवा साधन है। शब्द भाषा की प्राण शक्ति है, भाषा के निर्माण का माध्यम है - संगीत की विभिन्न विधाओं से सम्बद्ध कोई भी कलाकार उनसे अछूता नहीं था। उन कलाकारों की पूरी जीवन यात्रा उनकी जुबान पर रहती थी, यह मां सरस्वती का आशीर्वाद ही था उन पर। संगीत से सम्बंधित किसी भी विषय की जानकारी यदि आपको हासिल करनी हो तो सबसे पहला नाम आता था सुरेश शुक्ला जी का। किसी भी विषय पर उद्घोषणा करनी हो बस आप उन्हें मंच पर खड़ा करदें .... शब्द-प्रवाह, सरिस-सरिता की तरह उन के श्रीमुख से अविरल फूट पड़ता था और श्रोता उन को मंत्र-मुग्ध से सुनते रहते थे। जीवन के तमाम उतार-चढ़ावों के बीच धैर्य, सहिष्णुता, स्नेह, प्रेम, करुणा, कर्तव्य-परायणता, अनुशासन-प्रियता व विद्वता की प्रति-मूर्ति हम-सब के पथ-प्रदर्शक सुरेश शुक्ल जी। सुरेश जी की उद्घोषणाओं में वाक्-चातुर्य का कौशल देखने को मिलता था। अपनी बात को प्रभावी बनाने के लिए जन-श्रुतियों से ले कर लोकोक्तियों और हिंदी के श्रेष्ठ कवियों के कवितांशों, यहां तक कि उर्दू की शेर-ओ-शायरी का मिला-जुला रंग-धनुष बनाना कोई उन से सीखे ! शब्दों के उच्चारण के बारे में तब तक टोकते रहना जबतक सही उच्चारण आपके द्वारा उनतक न पहुंचे - ये उनकी खुसूसियत थी। बेहद ज़िंदादिल, खुशमिजा़ज और सकारात्मक सोच से परिपूर्ण उनका व्यक्तित्व हर किसी को आकर्षित करता था। एक सफल स्त्री या पुरुष के पीछे उसकी पत्नी या पति का ही हाथ होता है, तो मैं यह कह सकती हूं कि सुरेश शुक्ला जी को इस मुकाम तक पहुंचाने में उनकी पत्नी का और परिवार का बहुत बड़ा योगदान रहा। उनकी ज़िन्दगी का फलसफा था कि "ज़िन्दगी आसान बनाइए कुछ अंदाज़ से कुछ नज़र अंदाज़ से" साथ ही इस मुकाम तक पहुंचने के बाद उनके दिल की आवाज़ थी हर व्यक्ति स्वयं को चुनौती दे, आप हैरान होंगे कि आपमें इतना बड़ा बल य सामर्थ्य है और आप इतना कुछ कर सकते हैं। " जीवन का इम्तेहान आसान नहीं होता, बिना संघर्ष कोई महान नहीं होता, जब तक न पड़े हथौड़े की मार तब तक तो पत्थर भी भगवान नहीं होता।" ऐसी विभूतियों के लिए, अंत में, यही कहा जा सकता है कि "अच्छे लोगों का हमारी ज़िंदगी में दख़्ल देना हमारी क़िस्मत होती है और उन्हें सहेज कर रखना हमारा हुनर।
- विनीता जोहरी
उद्घोषिका, दूरदर्शन